Saturday, September 6, 2008

RAAT....

वो भी एक पहाड़ सी रात थी

और पल सूली लिए साथ थी,

हर तारा था डरा हुआ

और चांदनी भी काले बादलों के साथ थी !

कितने प्यार की जुबा टूटी

कितने उम्मीन्दो के रंग खाक हुए,

कितने फूलो की कलियाँ टूटी

कितने रंग न जाने बरबाद हुए !

लेकिन, है पता मुझको की,

कल खिलेंगे फिर से नए फूल,

आयेंगे नए पत्ते सूखे डालो पे

फिर से बैठ कोयल,जायेगी नए गीतों को

मगर, फिर भी कही

धड़क रहा है मेरा दिल

की,

जो वो रात न छू सकी थी हमे

कही शाखों की ये पहली बहार

जुदा न कर दे हमे

NARAZGI

हो अगर नाराज़ मुझसे ,तो

बैठे तो रहो मेरे दिल के पास,

बातें नही,मुलाकाते नही

रहा करो,कभी तो मेरे आँखों के पास !

जो है मुझको तेरे प्यार का झूठा गुमान

झूठा ही सही, जलने तो दो ये इक आस

हो कभी ऐसा यूँ भी की,

तुम भी तो आओ कभी मेरे होठो के पास !

ये किस नजरो से देखा है तुमने

कि तेरा देखना भी ,देखना न लगे आज

चाँद टुटा और बुझ गए सारे तारे

आयर भटक रहा हु तेरी रौशनी के पास

होता है जैसा मुझको,

वैसा ही तुम्हें भी होता है क्या?

बताओं ना……………..??????

लुभाती है लाली जैसे सूरज की मुझको,

वैसे ही तुम्हें भी लुभाती है क्या?

बताओं न………………...?????

पत्तो की चर-पर पे,

हाथ थामे वो चलना

गुलमोहर के फूलों से

वो ख्वाबों को बुनना

ख्वाबों को लेकर,

संभल कर वो चलना

और चुपके से छुप कर

उस गली में मिलना

आती है उस गली से वो खुशबु जो मुझको

वैसे तुम्हें भी आती है क्या?

बताओं ना……………?????